श्री सरस जी महाराज का जन्म 12 मार्च को 1975 में नगला दया गांव मेंए उत्तर प्रदेश राज्य में हाथरस ;ब्रज देहरीद्ध में हुआ था। एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे उनके पिता श्री नत्थी लाल शर्म और उनकी मां दोनों धार्मिक थे। उनका परिवार महाराज जी को अपनी तीसरी संतान के रूप में पा कर बहुत प्रसन्न था। 

श्री सरस जी महाराज

जन्म



12 मार्च को 1975  ;आयु 43द्ध

नगला दया ए हाथरस उत्तर प्रदेश 


ब्रज देहरी 

अनुक्रम

  • जीवन चरित
    2 बचपन
    3 भागवत वाचन की शुरुवात
    इन्हें भी देखें

जीवन चरित
श्री सरस जी महाराज एक आध्यात्मिक गुरु हैं और साथ ही मानवतावादी भी हैं। वह एक धार्मिक गुरु हैए उनका मधुर भजनए प्रवचन हर आत्मा के भीतर आनन्द लाता हैं। उनके संकीर्तन में भक्तो की बड़ी संख्या भाग लेती हैंए जो दिव्य भगवान श्री कृष्ण की उपस्थिति को सामने रखते हैं।
श्री सरस जी महाराजजिनको  महाराज जी के लोकप्रिय नाम से जाना जाता हैए वह श्री राधा सर्वेश्वरजी के भक्त हैं। वह भागवत कथा के एक  महान प्रवक्ता है और भारत बर्ष के कई राज्यों में लोगों को आत्मिक आनंद का अनुभव कराया है।  
बचपन​
बचपन में ही उनमें​ दिव्य अंतर्दृष्टि और महानता के लक्षण दिखाए दे गए थे ।
सरस जी महाराज बचपन से ही श्री किशोरी जी और श्री ठाकुर जी के गोपी ;कहानी और भक्ती भाव के आदिद्ध थे। महाराज जी बचपन से ही श्रीमद् भावगत और श्री रामचरित मानस जी को पढने और सुनने मे रूचिकर थे।
महाराज जी के पिता श्री सुप्रसि़द्ध पं0 थे। महाराज जी के पिता श्री सुप्रसि़द्ध पं0 थे। महाराज जी को प्रेरणा अपने पुज्य पिता जी और भक्ति मय श्री माता जी से प्राप्त हुई।  

भागवत वाचन की शुरुवात

श्री सरस जी महाराज को आध्यात्मिक और साथ ही वैदिक ज्ञान प्राप्त है। जब श्री सिर्फ सरस जी महाराज सिर्फ  15 वर्ष के थेए तो उन्होंने अपने सद्गुरु के आशीर्वाद और मार्गदर्शन के साथ पूरे श्रीमध भागवत महापुरान को सिख लिया था। जब तक वह हर दिन महापुरान की छंदों की निर्धारित संख्या का पाठ नहीं करतेए तब तक अपना भोजन नहीं करते थे। इस तरह कुछ महीनों के भीतर उन्होंने पूरे श्रीमध भागवत महापुरान को याद किया और हर रोज इसे पूर्ण भक्ति के साथ समझा।उन्होंने समय की थोड़ी सी अवधि के भीतर ही प्राचीन ग्रंथों को न केवल पढ़ कर बल्कि आत्मा से जोड़ कर अध्धयन किया। उनके सदगुरु को उनमे प्रतिभा और उनके अंदर की दैवीयता  को पहचानने के लिए देर नहीं लगी । इस तरह के एक युवा युग में उनके सदगुरु ने उनका नाम ष् सरस जी महाराज ष् रखा। जैसा कि उनके सदगुरु ने उनको सुंदर वक्ता के रूप में पहचाना थाए उन्होंने श्रीमद भागवत महापुरण के प्रवचनों और पाठ के संचालन का कार्य​ उनको सौंपा। सरस जी महाराज महाराज ने अपने सद्गुरु की उपस्थिति में शाम सत्संगों के दौरान नियमित व्याख्यान आयोजित किए।भगवान राम कथा और भजन संध्या उनकी विशेषता हैं। उनके शब्द प्रभावशाली और गतिशील हैंय उसका दर्शन दिलचस्प है और दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करता है

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