Sarkari School Merge in UP: Private School Boom, Public System Doomed?"

🏫 “मर्जर” — सुधार की रणनीति या सरकारी शिक्षा की शवयात्रा?


📍 भूमिका:
उत्तर प्रदेश सरकार सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को एकीकृत (Merge) कर रही है।
तर्क दिया गया: "बच्चे कम हैं", "संसाधन बिखरे हैं", इसलिए मर्जर से गुणवत्ता बढ़ेगी।

लेकिन सवाल यह उठता है —
बच्चे कम क्यों हुए?
निजी विद्यालयों में भीड़ क्यों है?
क्या शिक्षक जिम्मेदार हैं?
क्या यह सुधार है या व्यवस्था की विफलता की स्वीकारोक्ति?


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🔹 1. RTE का नियम — और सरकार की नीति?


👉 शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009 के अनुसार:

प्राथमिक विद्यालय (कक्षा 1–5): अधिकतम 1 किमी दूरी

उच्च प्राथमिक विद्यालय (6–8): अधिकतम 3 किमी दूरी


📌 उत्तर प्रदेश सरकार अब मर्जर करते समय बच्चों को 2+ किमी दूर भेज रही है, जो RTE का स्पष्ट उल्लंघन है।


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🔹 2. PTR का गणित, शिक्षा का राजनीतिक जाल


सरकार कहती है — “जहाँ PTR (Pupil Teacher Ratio) सही है, वहाँ और शिक्षक क्यों भरें?”

📌 लेकिन RTE कहता है:

प्राथमिक में: 1 शिक्षक = 30 छात्र

उच्च प्राथमिक में: 1 शिक्षक = 35 छात्र


अगर छात्र नहीं हैं, तो दोष बच्चों का नहीं — सिस्टम का है।

👉 बच्चे निजी स्कूल क्यों जा रहे हैं? क्योंकि वहाँ पढ़ाई होती है, सरकारी स्कूल में सिर्फ भोजन।


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🔹 3. स्थानीय उदाहरण — कानपुर का ‘मर्जर मॉडल’


> जनवरी 2023: कानपुर नगर में 101 प्राथमिक विद्यालय मर्ज किए गए।
कारण: सुविधाओं की कमी, छात्र संख्या में गिरावट।
प्रभाव: 3,000 से अधिक बच्चों को 1–2 किमी दूर भेजा गया।



📌 नतीजा: पढ़ाई से दूरी, बालिकाओं की सुरक्षा पर सवाल, शिक्षक असंतुलित।


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🔹 4. प्रयागराज — जब शिक्षक ही नहीं थे


> 109 प्राथमिक विद्यालयों में केवल 1 ही शिक्षक (वह भी श‍िक्षा मित्र) था।
परिणाम: मान्यता रद्द करने की प्रक्रिया शुरू।



👉 मर्जर नहीं, भर्ती और निगरानी चाहिए थी


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🔹 5. निजी स्कूल फल-फूल रहे — सरकार देख रही


जब हर गाँव में "Modern English Public School" नामक निजी स्कूल खुल रहे हैं...

...तो सरकार अपने स्कूल बंद कर रही है।

मै सरकार से पूछना चाहता हूं:
सरकारी स्कूल अब “भूतपूर्व विद्यालय” कहलाने लायक हो गए हैं — सिर्फ दस्तावेज़ों में ज़िंदा।


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🔹 6. शिक्षक — श्रद्धेय या ‘सिर्फ नौकरीधारी’?


✔️ लाखों सरकारी शिक्षक मेहनती हैं।

लेकिन:

जब शिक्षक अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ा रहे हैं...

जब 3 साल से स्कूल न जाने पर भी वेतन मिल रहा है...


📌 तब “विश्वास” मरा नहीं, मारा गया है।



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🔹 7. विपक्ष चुप क्यों?


क्या यह कोई “चुनावी” मुद्दा नहीं?

क्या कोई MLA/MP इन मर्जर स्कूलों में गया?

क्या पंचायतों से राय ली गई?


शिक्षा व्यवस्था का मर्जर — केवल सरकार नहीं, पूरे सिस्टम की चुप्पी का परिणाम है।



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🔹 8. मर्जर समर्थकों से 5 सवाल:


1. क्या बच्चों से बात की आपने?


2. क्या आपने स्कूल तक पहुँच की जाँच की?


3. क्या ग्राम पंचायत या SMC की सहमति ली गई?


4. क्या मर्जर के बाद मूलभूत सुविधाएँ बेहतर हुईं?


5. अगर शिक्षा विफल है, तो मंत्रालयों का मर्जर क्यों नहीं?




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🧾 निष्कर्ष:


सरकारी स्कूलों का मर्जर कोई सुधार नहीं,
बल्कि यह इस बात की प्रमाणिक गवाही है कि सरकार, शिक्षक समुदाय और सिस्टम —
समय पर कुछ नहीं कर सके।


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आगे क्या हो?

नियमों का पालन (1 किमी दूरी)

नई भर्तियाँ, निगरानी व्यवस्था

राजनीतिक और सामाजिक जवाबदेही


👉 मर्जर नहीं, मरम्मत चाहिए।


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📢 आपकी राय?

आपके गाँव या शहर में स्कूल मर्ज हुआ?
क्या इसका असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ा?

👇 कमेंट करें और इस विषय को चर्चा का हिस्सा बनाइए।



उमेश तिवारी 

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